गुनगुनायें
आधार छन्द-माधव मालती(मापनी युक्त, मात्रिक, 28 मात्रा)
मापनी-गालगागा,गालगागा,गालगागा,गालगागा।
समान्त-‘आये’ ,अपदान्त।
दर्द, गम, आँसू, खुशी हैं,जिन्दगी में क्या बतायें।
सांँस जबतक चल रही है, आइए हम गुनगुनायें।
हर घड़ी खुशियांँ न होती,अश्क ना रहते हमेशा,
जो मिले हँसकर जिएंगे, हौसला क्यों हार जायें।
आपसी यह रंजिशें अच्छी नहीं होतीं कभी भी
बेहतर है आइए हम, वैर आपस के भुलायें।
साथ कुछ जाना नहीं है, द्वेष, ईर्ष्या है जलन क्यों,
आदमी हैं आदमी को, देखकर तो मुस्कुरायें।
जो निराशा में घिरा हो, हार कर जो भी गिरा हो,
सूर्य उसको दे सहारा, आइए ऊपर उठायें।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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