गुनगुनाना छोड़ दें
ये घटाएँ अब्र से बूँदें गिराना छोड़ दें
आंसुओं से भी कहो आँखों में आना छोड़ दें।
ख़ाक में मिलकर हो हासिल गर मुहब्बत आपकी
बारहा सांसों का आना और जाना छोड़ दें।
है तशद्दुद का कहीं अंजाम गर चैनो अमन
फिर तो नग़्मे अम्न के हम गुनगुनाना छोड़ दें।
आपको ढूंढा किये हम दर ब दर यूँ जा बजा
साथ मेरे खुद ब ख़ुद को ढूंढ आना छोड़ दें।
अश्क बन अब्सार से ले लीजिए रुखसत न यूँ
हमने तो था यह कहा ख्वाबों में आना छोड़ दें।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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