गुनगुनाइए और मज़ा लीजिए
अब तो महफ़िल का मिजाज़ ज़ाहिर हो
उन शबनमी आँखों का अंदाज़ ज़ाहिर हो
शाहज़हाँ तशरीफ़ ला चुके मंच पर
हुकुम हुआ किे उनकी मुमताज़ हाज़िर हो
कुछ लोग जो मुहब्बत से तौबा किए बैठे है
फरमाइश करते है कि इश्क़ का ईलाज़ ज़ाहिर हो
दुआ,दवा,दिलरुबा,दर्द तुम्हें सब सुना दिया
बचा कुछ नहीं जिससे सलामती का राज़ ज़ाहिर हो
आपके हाँ को होठों ना को नैनों पे सजा लेंगे
फैसला कुछ भी हो बस आज के आज ज़ाहिर हो