गुनगनी धूप सा बदन तेरा है
गुनगनी धूप सा बदन तेरा है
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गुनगनी धूप सा बदन तेरा है,
मेघों सा बरसता मन मेरा है।
देखूं इक झलक है चैन आए,
रात के बाद जैसे हो सवेरा है।
गेसुओं की छांव बैठूँ पलभर,
दिल को भाता घोर अंधेरा है।
भंवर बन मंडराता फूलों पर,
तितलियों का वहीं बसेरा है।
रूप की रानी बंद पटारी में,
बीन पर नचा रहा सपेरा है।
नयनों का मोती है मनसीरत,
आँसुओं का रंग सुनेहरा है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)