गुणवत्ता का ह्रास
गुणवत्ता का ह्रास
// दिनेश एल० “जैहिंद”
ना संस्कृति की बात करो, ना अब संस्कार पर बोलो।
हे मनुज, तुम कितने गिर चुके अब अपने आप ही तोलो।।
नीति-न्याय की बातें इस जग में
अब व्यर्थ हुई हैं।
ईमान-धर्म की ये राहें इस जग में
अब अनर्थ हुई हैं।।
नगद-नारायन लगता है सबको
अब प्यारा भैया।
बड़े-बुजुर्ग का है कौन जगत में
पार कराये नैया।।
बड़ बोलापन हाबी हुआ है ऐसा
जन-जन में साईं।
घर में ही माँ-बाप उपेक्षित हो गये
संतान हुई पराई।।
घर टूटता, परिवार बिखरता देख
रहे हैं कुर्सीवाले।
सबको अपनी जेब पड़ी है चुप्पी
साधे हैं रखवाले।।
शिक्षा से कहते ज्ञान मिलता परंतु
अज्ञानता कैसे आई?
रिश्तों में आग लगी है ये चिंगारी
किसने कब लगाई?
नजर फेरके मंत्री बैठे वधिर न्याय- कर्ता भी चुप हैं।
समाजशास्त्री भी चुप बैठे हैं, क्यों
ज्ञानी भी गुम हैं।।
मानवता पर पकड़ ढीली पड़ गई ज्ञानी ध्यानी की।
अब कोई असर नहीं है इंसानों पर
संतों की बानी की।।
अब कौन सुनेगा उपदेश गीता का
अश्लीलता के आगे?
कौन बनेगा अब पुरुषोत्तम रामचंद्र
नर अधम अभागे।।
महात्माओं की वाणी भी बे-असर
हम चंडालों पर।।
हितोपदेश की बातें भी प्रभावहीन
हम कंगालों पर।।
कौन बनेगा श्रवण जो बाप-माँ को
पार-घाट लगाये।
कोई नहीं बचा अब इस धरती पर
कुटुंब-पाठ पढ़ाये।।
अब ऐसे नीच-अधम पुरुष हैं यहाँ
मीन-मेख निकालें।
अपना धर्म और कर्तव्य भूल कर
धन के हैं मतवाले।।
मातृपितृ व जन्मभूमि से भी कोई
ऊँचा है जग में।
राष्ट्र नहीं तो हम नहीं सुख ऐसा है
कौन-से स्वर्ग में?
माता को जो ठुकरायेगा वो कहीं
चैन नहीं पायेगा।
दौलत की ढेर पर बैठा हो तो भी
दफन हो जायेगा।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
23/05/2023