” गुड नाईट “(शुभ रात्रि )..बन गया परमाणु बम “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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कभी -कभी अनायास हम कह देते हैं ” समय कहाँ मिलता है ?…”समय का आभाव है” और दूसरे को कहते हैं .”आप कितने खुशनसीब हैं कि आपके पास समय ही समय है !”….. एक क्षण थोडा सोचकर देखिये तो इस तरह की बातों से नकारात्मक और मायूसियत छवि हमारी उभरने लगती है ! समय ही तो एक ‘अमोल निधि’ है जिसके बंटबारे में असमानता नहीं दिखलायी गयी है …सबके झोलिओं में बराबर -बराबर २४ घंटे दिए गए हैं ! इनमें आरक्षण की बू कभी दिखलाई ना दी ! जितने भी लोग शीर्ष पर पहुंचे हैं वे अपने हिस्सों के समयों का उपयोग किया है ! दैनिक मूलभूत क्रियाकलापों के अलावे हरेक व्यक्तिओं का अपना- अपना विभिन्न कार्य क्षेत्र होता है ..दिनभर हम जब व्यस्तता को झेलने के बाद अपने -अपने पेवेलिअन लौटते हैं तो एक सुखद एहसास होता है और हम अपनी हॉबी …एक्स्ट्रा केर्रिकुलर सेएक्टिविटीज …अपने लोगों से मिलना -जुलना ..परिवारों के साथ समय बिताते हुए हमारी थकान मिट जाती है !…पर जिन्हें कुछ करने की लालसा होती है उनके लिए आराम कहाँ ?…. आप कहीं और हैं…. हम कहीं और !..फिर भी हम अपने यंत्रों से जुड़े होते हैं ! कोई मित्र फेसबुक के दरवाजे पर दस्तक देता है और एक छोटा कमेंट करके ” गुड नाईट ” कहता हैं ! सांकेतिक भाषा का प्रहार ह्रदय को विचलित कर देता है ! हम और बातें नहीं करना चाहते हैं ..और लिखना नहीं चाहते हैं ..हो सकता है हम वही राग अलापने लगें कि ‘समय का आभाव’ है ! …हम तो अपने डिवाइस को बंद भी कर सकते हैं ..कौन हमको रोकेगा ?…कौन हमको टोकेगा ?..पर हम मानते नहीं ..हम गोली दागते हैं और भाग निकलते हैं ..कोई आहात होता है तो होने दो …कोई हमसे पूछने की हिमाकत कर भी ले तो कहेंगे ….समय हमको मिलता नहीं !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड