गुड़ और नमक
गुड़ और नमक..
उसके व्यवहार में नमक की कमीं थी,
वो सबको धोका देते चला गया,
अक्ल और समझ तब आयी,
जब सबकी नजरों से उतर गया.
उसकी वाणी में, गुड़ की जुबानी थी,
एक एक कर सबने पहचानी थी,
पहन मुखौटा नया, वो रोज निकलता,
नयी तरकीबों से….उसे बदलता.
जाने कैसे ,
बैमानी और चापलूसी वो सीख गया,
बार बार धोका दे कर,
लोगों को छलते गया.
नादान था, अज्ञान था,
घमंड में डूब रहा था,
जाने अंजाने पाप वो किये जा रहा था.
कितने ही दुखियों,
का अभिशाप लिए जा रहा था.
एक दिन फिर,
उपर वाले ने इंसाफ की लाठी चलाई,
उसके कुकर्मों की सजा सुनाई,
फूट फूट कर, वो रो पड़ा,
फिर……वो मुंह के बल गिर पडा़.
छल , कपट…..बरबादी का कारण है,
उसूलों में जीना ही, सच्चा जीवन हैं.