गुज़रते हैं
गुज़रते हैं
आज भी अपने शहर की
गली – गली, कूचे – कूचे से
ख़ुद की तलाश में
पहचाना सा
कोई चेहरा अब मिलता नहीं
तुम जो निकली
मेरी जिन्दगी से
किसी और से कोई पहचान न रही
हिमांशु Kulshrestha
गुज़रते हैं
आज भी अपने शहर की
गली – गली, कूचे – कूचे से
ख़ुद की तलाश में
पहचाना सा
कोई चेहरा अब मिलता नहीं
तुम जो निकली
मेरी जिन्दगी से
किसी और से कोई पहचान न रही
हिमांशु Kulshrestha