गुजरी महल (कहानी)
भारत के इतिहास में कई सफल और असफल प्रेमी-प्रेमिकाओं की प्रेम कहानियाँ है जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। ये प्रेम कहानियाँ सुनने में परिलोक की कथा जैसी लगती हैं। जिसमे सिर्फ सुख ही सुख होता हो दुख तो कभी आता ही नहीं है। ये प्रेम कहानियाँ इतनी आसान और इतनी सरल नहीं होती हैं। ये प्रेम कहानियाँ सिर्फ सुनने-सुनाने में ही सुन्दर लगता है। इन प्रेम करने वाले प्रेमियों को अपने प्रेम को सफल बनाने के लिए कई मुश्किल रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। प्यार एक एहसास है। प्रेम एक मजबूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है।
खुसरो ने सच ही कहा है-
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी इसकी धार।
जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।
अथार्त- प्रेम एक ऐसा दरिया है जिसकी धारा उल्टी बहती है जिसे तैरकर कर पार नहीं किया जा सकता इसमें डूबकर ही पार किया जा सकता है।
हरियाणा के हिसार जिले में यह ‘गुजरी महल’ सुल्तान फ़िरोज शाह तुगलक़ और गुजरी के अमर प्रेम का गवाह है। हिसार का यह गुजरी महल सन् 1354 ई० में फ़िरोज शाह तुगलक़ ने अपनी प्रेमिका के याद में बनवाया था। गुजरी और सुल्तान के इस प्रेम कहानी को आज भी वहाँ गांव के लोग इकतारे पर गाते है। वहाँ के लोग गुजरी के इस प्रेमगीत को ध्यान से सुनते हैं। लोकगीतों में भी गुजरी की प्रेम गाथा को गाया जाता है। यह कहानी उस समय की है। जब फ़िरोज शाह तुगलक़ दिल्ली के सम्राट नहीं थे। हिसार का यह इलाका उस समय घना जंगल था। इन्हीं जगलों में सुल्तान फ़िरोज रोज-रोज शिकार करने आया करते थे। उस समय वहाँ के जंगलों में गुजर जाती के लोग रहा करते थे। जिनका मुख्य पेशा गाय भैस पालन-पोषण करना था। उस समय वहाँ की भूमि उभड-खाबड़ थी और चारों तरफ घना जंगल था। गुजरों की कच्ची बस्ती के नजदीक ही एक पीर बाबा का डेरा था। उस तरफ से आने-जाने वाले मुसाफ़िर लोग वहाँ बैठकर आराम किया करते थे। इस पीर बाबा के डेरे के पास ही गुजरी दूध देने आया करती थी। पीर के डेरे के पास ही एक कुआँ था। इसी कुएं से गांव के लोग पानी भी लेते थे।
एक दिन शहजादा फ़िरोज को शिकार खेलते-खेलते जंगल में बहुत जोर से प्यास लगी वे पानी की तलाश में अपने घोड़े के साथ पीर के डेरे पर आ पहुँचे और घोड़े से उतरते ही गिरकर बेहोश हो गए। वहीं पर गुजरी दूध देने जाया करती थी। उसने देखा कि एक व्यक्ति बेहोश पड़ा है। गुजरी ने बाल्टी से दूध निकालकर फ़िरोजशाह के मुँह पर गिरा दिया। जिससे फ़िरोजशाह को होश आ गया और वे उठकर खड़े हो गए। उसने पहली बार गुजरी को देखा और उसे देखते ही मोहित हो गए। इस घटना के बाद फ़िरोज शाह रोज-रोज शिकार खेलने के बाद वहाँ आने लगे। गुजरी भी शहजादा को देखकर प्रभावित हो उठी थी। अब हर ऱोज फ़िरोजशाह शिकार के बहाने गुजरी को देखने चले आते थे। दोनों एक दुसरे को बिना देखे नहीं रह पाते थे। यह प्रेम का रोग भी अजब है जब तक यह रोग नहीं होता तब तक कुछ भी नहीं पता चलता लेकिन जैसे ही यह रोग लग जाता कुछ भी बुरा-भला, ऊँच-नीच नहीं दीखता है। यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलता रहा एक दिन फ़िरोज गुजरी के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिए। गुजरी ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया लेकिन गुजरी ने सुल्तान के साथ दिल्ली जाने के लिए इनकार कर दिया। कारण यह था कि गुजरी के माता-पिता बहुत बूढ़े थे। फिरोज ने उसे यह कहकर मना लिया कि वह उसे दिल्ली नहीं ले जाएगा। फ़िरोज शाह ने हिसार में ही गुजरी के लिए एक महल बनवाया। जिसे गुजरी महल कहा जाता है। यह गुजरी महल प्यार का प्रतीक है। जिसे बहुत दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते हैं।
फ़िरोजशाह तुगलक का जन्म सन् 1309 ई० में हुआ था। वह भारत का अंतिम शासक था। फ़िरोज शाह तुगलक का हुकूमत सन् 1351 ई० से सन् 1388 ई० तक रहा। फ़िरोज शाह तुगलक दिपालपुर की हिन्दू राजकुमारी का पुत्र था। किवदंती है की गुजरी एक बार दिल्ली आई थी लेकिन कुछ दिनों बाद वह फिर अपने घर हिसार लौट गई।
कवि नीरज के शब्दों में- जो पुण्य करता है वह देवता बन जाता है जो पाप करता है वह पशु बन जाता है, किंतु जो प्यार करता है वह आदमी बन जाता है।
जय हिंद