गीत_ मात मेरी, क्यों जुल्म करे
मात मेरी, क्यों जुल्म करे
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मात मेरी क्यों जुल्म करे
मात मेरी क्यों जुल्म करे
बन गई तुम्हारे,गात का हिस्सा
अनचाही यादों का किस्सा
सुन, ओ मेरी मेहरुन्निसा ! क्यों आँखोँ में नीर भरे
मात मेरी क्यों जुल्म करे-‐–
ना बिन मेरे गूंजे शहनाई
लगूँ तुझे मैं बहुत पराई
क्यों अब तू मेरे घर आई ,सोच सोच के बहुत डरे
मात मेरी क्यों जुल्म करे
कहने को तो देवी कहलाती
नहीं किसी को मैं हूँ भाती
हसरत मेरी दिल में रह जाती, हर बार तू मेरे प्राण हरे
मात मेरी क्यों जुल्म करे
मात मेरी क्यों जुल्म करे
शायर देव मेहरानियां
अलवर राजस्थान