गीत _दुनियाँ सारी,इश्क की मारी
दुनियाँ सारी ,इश्क की मारी,
मैं ,सोच सोच कर, रह जाता हूँ।
ये कैसी, लग गयी, बीमारी,
दुनियाँ सारी इश्क की मारी।।
हर गली मोहल्ले में शायर पल रहे,
देख, हुस्न को आंहें भर रहे,
इश्क की आग में निशदिन जल रहे,
चढने लगी खूमारी।
दुनियाँ सारी इश्क की मारी।।
बन के बदरी यौवन छा जाये,
हुस्न को इक पल ,चैन ना आये,
इक हमदर्द ,उसे फिर भाये,
आँखों मे ,रात बीत जाये सारी।
दुनियाँ सारी, इश्क की मारी।।
पति छोड़कर ,पत्नि भागे,
शर्म-हया ,ना उसके आगे,
कैसे हसीँ जहाँ ,को त्यागे,
रोयें बच्चे दे दे किलकारी।
दुनियाँ सारी,इश्क की मारी।।
इश्क- मोहब्बत, कैसा फसाना,
जिसके पीछे, पड़ा जमाना,
दिल ना किसी से, कभी लगाना,
लिखना अल्फाज ऐसे फितरत हमारी
दुनियाँ सारी,इश्क की मारी।।
दुनियाँ सारी ,इश्क की मारी,
मैं सोच सोच कर, रह जाता हूँ।
ये कैसी, लग गयी, बीमारी,
दुनियाँ सारी इश्क की मारी।।
शायर देव मेहरानियां
अलवर,राजस्थान