गीत
रक्षा बंधन (गीत)
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तुम्हें नेह रोली तिलक लगाऊँ
बढ़े प्रीत अपनी भैया ये चाहूँ
तुम्हें बाँध राखी खुशियाँ मनाऊँ
रक्षा कवच का उपहार पाऊँ।
(१)बढ़े उम्र भैया की करूँ कामना मैं
बहे संपदा सुख खुशी आँगना में
भरे झोली भाभी की धरूँ भावना मैं
करूँ भाल टीका इसी कामना में
तुम्हें नेह रोली तिलक……. ।
(२)चमक चाँद सूरज से शौहरत फैला दो
करो उन्नति कुल का मान बढ़ा दो
बमो ज्योति दीपक तम को मिटा दो
बसा प्रीत उर में दूजे घर को सजा दो
तुम्हें नेह रोली तिलक………।
(३)भैया की बाँहों ने झूला झुलाया
पिता तुल्य बन करके नेह लुटाया
चढ़ी गोद भाभी की बचपन बिताया
सजे नाज़ नखरे गले से लगाया
तुम्हें नेह रोली तिलक……….।
(४)कभी बैठी सोचूँ हुई क्यों बड़ी मैं
छिनी छाँव बरगद की अकेली खड़ी मैं
रखा हाथ सिर पर दिलाया दिलासा
अभी मैं हूँ जीवित हुई क्यों निराशा
तुम्हें नेह रोली तिलक……….।
(५)रखूँ पाँव सरहद अँगना बना दूँ
लुटा प्यार भैयन के तिलक लगा दूँ
जिएँ भाव समरस मानव धरा पर
रहें साथ मिलकर हम सब यहाँ पर
तुम्हें नेह रोली तिलक……….।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर