गीत
विरह गीत
“बहुत रोते सनम तुम बिन”
बसे किस देश में जाकर
यहाँ हमको भुला करके,
बहुत रोते सनम तुम बिन
रात सपने सजा करके।
(1)छुआ जब धूप ने तन को
भोर निद्रा जगा करके,
#अगन से जल उठा मन भी
चुभन तेरी दिला करके।
सुखाए केश अँगुली से-
तपन की लौ जला करके।
बहुत रोते सनम तुम बिन….
(2)#लगन चंदा-चकोरी सी
मिलन की आस रखती है,
सजा कर दीप द्वारे पर
सजन की राह तकती है।
जली ये तेल बिन बाती-
रीत जग की निभा करके।
बहुत रोते सनम तुम बिन….
(3)घटा घनघोर छाई है
#गगन भी फूट कर रोया,
जगूँ विरह की मारी मैं
ज़माना रात भर सोया।
तरसती नीर बिन मछली-
तड़प तेरी लगा करके।
बहुत रोते सनम तुम बिन….
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर