गीत
“मस्त पवन का झोंखा”
बन पवन का एक झोंखा
डालियों से खेलता हूँ
छू समंदर की लहर मैं
मोतियों को चूमता हूँ।
खेत में घुस मैं दिवाना
कुछ सुरीले गीत गाता
तितलियों के साथ हिलमिल
भ्रमर जैसा मीत पाता।
लू थपेड़ों को डराकर-
मस्तमौला झूमता हूँ।
मोतियों को चूमता हूँ।।
गोद में नन्हीं कली को
थामकर झूला झुलाता
प्यार से लोरी सुनाकर
मैं नहीं फूला समाता।
फूल का श्रृंगार करके-
प्रीत वन की लूटता हूँ।
मोतियों को चूमता हूँ।।
चढ़ शिखर छू बादलों को
उड़ चला मैं चहचहाता
श्वेत शीतल चंद्रमा को
हाथ में ले मुस्कुराता।
ओस से गीला हुआ मैं-
इक ठिकाना ठूँठता हूँ।
मोतियों को चूमता हूँ।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर