गीत
जय माता दी
?मेरी सुन लो पुकार?
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हे माँ अम्बे माँ दुर्गे माँ, सुन ले मेरी पुकार माँ
जाऊं तो किधर जाऊं, मुझको राह दिखा दो माँ
भटक रहा हूँ संसार में, अपनेपन की चाह में,
दर्द बहुत मै पाया हूँ, झूठे रिस्तो की राह में,
राह बड़ी दुर्गम हैं माता, मन व्याकुल आँखे नम हैं,
झूठी आशा का उजियारा, चलते जाते पथ पर हैं,
अपनेपन की चाह लिए, मृगतृष्णा सम्बन्धो की,
कहि हँसी के कमल खिले, कहि उदासी अपनों की,
सूनापन अति निर्मम मन हैं, सम्बन्धो की चाहत में,
समय तो हम गवां दिये, झूठे रिश्तों के अपनेपन में,
कही मिले सुख के गागर, कही दुखो का सागर हैं,
स्वर्ण नगर सी आभासी, दुःख से भरा यह संगम हैं,
हरे-भरे फूलो की बगियाँ, हरियाली इसमें कम हैं,
बसन्त की चादर ओढ़े बाहरे, पतझड़ का यह मौसम हैं,
मेरे कदम पड़े वही, बिछे जहां यादो के कण्टक,
मेरे हृदय को वेध रही हैं, लहू निकाल रही यह कण्टक,
चारो तरफ निराशा हैं, माँ बस तुझसे आशा हैं,
लुप्त हुए इस जीवन को, माँ अब तेरा सहारा हैं,
श्रद्धा सुमन लेकर बेदर्दी, माँ तेरे द्धार पे आया हैं,
लेकर नाम तेरा बेदर्दी, चरणों में शीश झुकाया हैं,
सारे दर्दो को भूल माँ, बेदर्दी दर पे आया हैं,
हमको माँ अपना ले, बेदर्दी शीश झुकाया हैं,
★#बेदर्दी#★