गीत
कृष्ण की अभिलाषा
मैया मोरि सांवरी सुरतिया
कितनी प्यारी सोहत होती
कमर करधनिया क्षुद्र घंटिका
कट-कट बाजत लटकी होती
शिखा मध्य में मेरी चुटिया
लम्बी-लम्बी लटकत होती
पीत वर्ण का पटका होता
गले वैजयंती माला होती
मोर पंख माथे बिच होता
अधर मुरलिया बाजत होती
अखियां अति मनोहर लगती
जो करिया अंजन सालें होती
शीतल-शीतल चंदन होता
अरुण तिलक की भालें होती
ग्वाल-वाल नंदगांव से होते
सरिता यमुना सी बहती होती
शीश धरे दधि-माखन हंड़िया
राधा गोपी संग जावत होती
मैया मोरि सांवरी सुरतिया
कितनी प्यारी सोहत होती
©दुष्यंत ‘बाबा’