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14 Jun 2023 · 1 min read

गीत 24

गीत
————————
मौन हैं दिन भीड़ ने
ओढ़ा अकेलापन ।।
देखता हूँ अब अधिक
वाचाल है दरपन ।।
🌹🌹
जल भरे बादल भिगोते ,
लौट करके रात को ।
स्वेद ने पिघला दिया है ,
सुख, सलोने गात को ।
निपट अंधा पंथ पर
चलता हुआ कानन ।।
🌹🌹
हुआ व्यापारी अँधेरा ,
कैद भोली भोर है ।
कुटिल कपटी धड़कनों में ,
बस छलों का शोर है

हर खुशी से हो गयी है
समय की अनबन ।।
🌹🌹
दोपहर के हाथ में है
क्रोध की जलती मशाल ।
भाव मन की दूरियों के ,
मौत होती मालामाल ।
अस्मिता के कोष
लुटते जा रहे हर दिन ।।
🌹🌹
©श्याम सुंदर तिवारी

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