गीत
गीत
…क्षेत्रपाल शर्मा
माना तुम काफ़ी सुन्दर हो
और ज्ञानवान
पर किसी दूसरे की तह
तुमने कैसे पाई
अपने पैमाने से औने पोने में
हो नाप चुके हो , उसकी गहराई
वह सुन्दर जिसके हों काम सुगढ
जिसने घर संसार संवारा हो
हो उसको अपने पर स्वाभिमान
जो अनकिया कहना न गवारा हो
वह सुन्दर जो करके
बिन बोले मन को जीता हो
वह क्या ?जो बात बात पर
बोल बोल कर रीता हो
घोर अभावों को भी हंस हंस कर
वह जो बूढों का रखे मान
तर्पण पूजा उत्सव में
वह जो पूजा पाठी का रखे ध्यान
इतिहास अमर है श्रुति स्मृति से
अपने पत्थर गढता है
जो मान दूसरों का रखे अपने सदृश
इस जग में मान उन्हीं का बढता है .