गीत
– – – क्षेत्रपाल शर्मा
बीता पचपन, ऐसा मेल।
गुड्डा गुड्डी का जस खेल।।
खन रूठे ,खन मानमनौवल,
गली मुहल्ला ठेलमठेल ।।
ये मेरा हो,वो मेरा हो
इसमें सारा समय गंवाया,
सांझ हुई ,तब चेतन आया,
जग मिथ्या ,यह समझ न पाया।।
नया घरौंदा,नयी बात है,
आओ लोगों से कुछ सीखें
रहो साथ , जो आग बुझाएं,
न उनके , जो बुझी , लगाएं।।
पूछे ,देना नेक सलाह,
अमर रहोगे, ये है राह ।।
पैरों में धरती लिए
आंखों में आकाश,
रहो तैरते ,मणि सदृश
इंद्रधनुष के पास।।