गीत
गीत
रिमझिम रिमझिम बरखा आयी, मेघों की बारात लिए।
झम-झम झम-झम बरस रही है, उल्लासित सौगात लिए।।
तड़ित करधनी कंकन नूपुर,कंठ हार चमकार भरे।
पृथ्वी पर जीवन सिंचन को, हृदय नवल उद्गार भरे।।
वेदों से अभिमंत्रित होकर, रश्मिरथी रथ चाक चढ़ी।
बादल की सजनी प्रियतम सँग, आयी निर्मल नीर मढ़ी।।
बेकल छलक छलक रह जाती, बदली तन अभिजात लिए।
मंडप मंडूकों के गाते,निज गालों को ढ़ोल किए।
चातक मोर पपीहा नाचें, नृत्यकला का मोल किए।।
शोभा भीगी भीगी फिरती, कंचुकि से रसधार बहे।
कोमल कोंपल कोमलांगना, मुकुलित मदन बयार बहे।।
दृग बाणों से घायल करती, तरुणी मन उत्पात लिए।
भूधर धूल धूसरित जो थे, तोयपात से भव्य हुए।
धरा धवल है जल फुहार से,अंग अंग सब नव्य हुए।।
पल्लव धुलकर लगे चमकने, दर्पण पावन वृक्ष हुए।
थकित हुए थे तृषित पथिक जो, फिर चलने में दक्ष हुए।।
वन उपवन सब नृत्यमग्न हैं, मादकता की घात लिए।
अखिल सृष्टि अत्यंत मुदित है, मन में मधुर हिलोर भरी।
खुशियाँ बरस रहीं हैं जैसे, मलयज वायु झँकोर भरी।।
शीतल मंद सुगंधित धरती,
स्निग्ध वायु की गंध नई।
सारी जगती हुई आज फिर, पुर्नजन्म मानिंद नई।।
रूपक कितने कहूँ अकथ है, शुचित रूप बरसात लिए।
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नित्यानन्द वाजपेयी ‘उपमन्यु’