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19 Jun 2022 · 1 min read

गीत

बोध अतुल्य सौन्दर्य अपरितं
लावण्या रसना तुम प्रियतम ।
हुआ हृदय झँकृत देखा जब ,
अपरिभाषित अनन्त अनुपम ।।

असंख्य रश्मि बिखराये दिनकर
मुख मण्डल दमके कुछ हटकर ।
प्रीत अलौकिक अद्भुत मधुभर,
खिल गए सुमन तुमको यूँ पाकर।।

दिव्य चाँदनी लगती मधुरिम ,
तम में ज्योति जगाती प्रतिपल ।
अधर भरे रस रँग सजे से ,
खिले रहें ये हृदय सुमन दल ।।

नाचे मन मयूर अब चंचल ,
नयनोँ के अँतर है हलचल ।
स्पँदन साँसोँ की ऊष्मित ,
पिला मुझे दो प्रेम हलाहल ।।

कापीराइट
@ अरुण त्रिवेदी अनुपम

Language: Hindi
147 Views
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