गीत
बस यूँ ही
=*=
प्रणय गीत रच ,
स्मृतियोँ के नित ,
ह्रदय धड़काते
हो तुम …….
दहकते पलाश सी ,
अनुभूतियोँ के फिर ,
मेघ बन छाते
हो तुम……..
सुरमई स्वपनिल ,
नशीली आँख का ,
काज़ल कभी तुम ,…
स्फुरन भर देह का ,
उन्माद बन जाते
हो तुम………
प्रस्तर कभी तुम
मोम ,
सी नीमन कभी तुम ,..
शहद से लबरेज रस ,
उर प्रेम भर लाते
हो तुम …..
अनुपम बदलते रंग ,
मौसम की तरह तुम ….
ठण्ड मेँ तन ऊष्णता ,
से पर बहुत भाते
हो तुम ……।
@ कापीराइट …
…अरुण अनुपम ..,.