…… गीत ….
.. …. गीत ….
देखकर फिर सघन जलधर ,
विकल बरसे नयन झर- झर ।
वेदना के गीत की यह ,
मधुर धुन किसने सुनायी ?
चाह की परिकल्पना में
मूर्ति मञ्जुल क्यों बनायी ?
क्यों किया श्रृंगार अनुपम
कामना नें रूप धर- धर ?
सूखते से पादपों नें
मौन रह कर सब सहा है
अधखिली कलियों नें प्रतिपल
आस हिय भर कर कहा है
खिल उठे फिर प्रेम- मधुबन
अश्रु बरसो आज निर्झर
हम चले थे नभ से लेकर
मन में सुन्दर सप्त- घेरे
दिन सुखद अब रात में हैं
खो गये वह पंथ मेरे
प्रेम- दीपक ! आज जलना
साथ मेरे आह भर- भर
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ