गीत
संवेदना के पर कतरे, और ऊंचे हो गए
कौन कहे ये दर्द यारा, यार नीचे हो गए
खुली खुली थीं खिड़कियां जो
सिर हवाओं के कटे
हौले हौले कह रहा था
बहुत अच्छे दिन कटे
व्यंजना के सुर बदले, साज ऊंचे हो गए
कौन कहे ये दर्द यारा, यार नीचे हो गए।।
झुकी नजरें, घर का कोना
अब कहां वो बिछौना
लब पे उंगली चुप-चुप-चुप
खो गया वो खिलौना
लांघ कर रेखा सब लक्ष्मण, गान ऊंचे हो गए
कौन कहे ये दर्द यारा, यार नीचे हो गए।।
तोड़ न पाये झील आंसू
मृत्यु के नियम बदले
राम नाम था सत्य किंतु
काल ने उपक्रम बदले
टूटे-टूटे ये घरौंदे, आज ऊंचे हो गए
कौन कहे ये दर्द यारा, यार नीचे हो गए
सूर्यकांत