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27 May 2020 · 1 min read

गीत

‘रिक्शा चालक’

सन्नाटा सड़कों पर पसरा, बैठ सवारी तकता है,
लाचारीवश भूखा-प्यासा, तपन धूप की सहता है।

कोराना की महामारी से, कैसा संकट छाया है?
बीत गया ये दिन भी सारा, कोई नज़र न आया है।
ज्येष्ठ दुपहरी स्वेद बहाकर, हर पल आहें भरता है,
लाचारीवश भूखा-प्यासा, तपन धूप की सहता है।

बता रहीं उभरी नस इसकी,श्रम को पूँजी यह माने,
भरने को परिवार उदर ये, निकला दो पैसे लाने।
पायेदान पर बैठा चालक, मौन साधना करता है,
लाचारीवश भूखा-प्यासा, तपन धूप की सहता है।

सर्दी, गर्मी, बारिश में ये, त्याग सुखों को जीता है,
फूटे छाले पग में लेकर, खारे आँसू पीता है।
वृद्धावस्था में दुख झेले, ताने सुनता रहता है,
लाचारीवश भूखा-प्यासा, तपन धूप की सहता है।

पीर न इसकी जग ने जानी, शोक द्रवित मन झुलसाता,
अंतर्मन जब क्रंदन करता, अपराधी खुद को पाता।
दर्द छिपाए संघर्षों का, मंद-मंद ये जलता है,
लाचारीवश भूखा-प्यासा, तपन धूप की सहता है।

स्वरचित
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 1 Comment · 261 Views
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