गीत
“ईश वंदना”
ईश के दर पर खड़ी करबद्ध करती प्रार्थना।
प्रेम अंतस में भरूँ सत्काम की हो कामना ।
छा रहा घनघोर तम अब खो रहा विश्वास है,
चेतना को शुद्ध कर दो लुप्त होती आस है।
बढ़ रही हिंसा जगत में नेह उर से घट रहा,
पाल नफ़रत बैर मानव अब धरा पर बँट रहा।
हे विधाता ! मैं अहिंसा सत्यपथगामी बनूँ-
लोभ-लालच त्याग मन में धर्म की हो भावना।
प्रेम अंतस में भरूँ सत्काम की हो कामना ।।
खोल लोचन देख लो तृष्णा हृदय में पल रही,
मर रही संवेदना माया मनुज को छल रही।
दुष्टजन निष्ठुर बने लगता नहीं सत बोध है,
हर तरफ आतंक फैला बढ़ रहा प्रतिशोध है।
राष्ट्र के उत्थान में सौहार्दमय सद्भाव हो–
स्वच्छ मन से जगतहित कल्याण की हो चाहना।
प्रेम अंतस में भरूँ सत्काम की हो कामना ।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’