गीत, मेरे गांव के पनघट पर
मेरे गाँव के पनघट पे थके बटोही आ जाना
जब भी प्यास लगे तुझको अपनी प्यास बुझा जाना।।
जेठ दुपहरी तपती धरती
जब मिलता नहीं सहारा है।
तन मन व्याकुल हो जब जब,
हवा यहाँ का पा जाना।।
मेरे गाँव………..।।
युगों युगों से बहती नदिया,
कल कल करती धारा है।
झूम रही तरूवर की डाली,
सबको गले लगा जाना।।
मेरे गाँव…………..।।
शरणागत जो भी आया
इसने सबको तारा है।
राह भले दुर्गम हैं तेरी,
माटी का सुख पा जाना।।
मेरे गाँव…………….।।
नदिया घाट घाट पर बहती,
घाट बाट सब न्यारा है।
आते जाते बोझिल हो मन,
मन अपना बहला जाना।।
मेरे गाँव…………………।।
@© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
मेरे प्रकाशित गीत संग्रह वंदेमातरम् २३०२३में प्रकाशित