गीत- मुहब्बत की मगर इतना…
मुहब्बत की मगर इतना नहीं हम प्यार को तरसे।
सुना है आइना हरपल तेरे दीदार को तरसे।।
ख़ुदा जलने लगा मुझसे नहीं कुछ माँगता हूँ मैं।
चुझे पाकर नहीं कुछ और अब तो चाहता हूँ मैं।
ख़ुदा भी अब मुहब्बत में मेरी इक हार को तरसे।
सुना है आइना हरपल तेरे दीदार को तरसे।।
तेरी मुस्क़ान से हीरा सदा चमके लुभाए मन।
हँसी से ग़ुल खिला करते महक भरते ज़ुदा गुलशन।
न बिखराओ अगर ज़ुल्फ़ें घटा नभ द्वार को तरसे।
सुना है आइना हरपल तेरे दीदार को तरसे।।
लबों से रस लिए तेरे गुलाबों में जवानी है।
विचारों से अदब पाकर ख़वाबों की कहानी है।
निग़ाहें बंद हों तेरी दमक संसार को तरसे।
सुना है आइना हरपल तेरे दीदार को तरसे।।
आर. एस. ‘प्रीतम’