गीत , मीत के
दिनांक 27/5/19
गुनगुनाने लगी हूँ मैं
गुनगुनाने का
तो बहाना चाहिए
जिन्दगी अब
मुस्कुराने लगी है
जब तुम गुनगुनाने लगे हो
तो दूर जाने लगी हैं बिरहने
खास हो तुम
हमारी जिंदगी में
कैसे कह दूँ
छोड़ दो अकेला तुम
आज ही से तो
मैं गुनगुनाने लगी हूँ
सांझ ढलने लगी है
परिन्दें लौटने लगे है
कल फिर नया सबेरा होगा
जागने लगी हैं
नयी उम्मीदें, नयी उमंगे
आज फिर कुछ
गुनगुनाने लगी हूँ
कुछ भी कहो, नये गीत
रच लूंगी मैं ,
शब्दों को मना लूंगी मैं,
धुनों में बस जाऊँगी मै,
बस अब तो सतरंगी
गीत गुनगुनाने लगी हूँ मैं
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव
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