गीत मल्हार
सूखा सावन प्यासी नदियाँ
बेरन फुहार बरखा लागे। (1)
अनमने आस में तकते
बेकल तरु सहसा लागे।। (2)
बेला चंपा और चमेली,
फीकी मुस्कान लिली की। (3)
उर भी लेत उबासी अब,
प्रीतदल कछु अधखिली सी।। (4)
रूठन लागा सदाबहार,
सखी रे कैसे गायें गीत मल्हार…(5)
लुका-छिपी खेले बदरा,
अभौ तक बरसत नाहिं। (6)
पपीहा नार तरावट खोई,
देख मेघन तरसत जाहिं।। (7)
धानी चूनर ओढ़े धरा,
करन लगी क्यों चित्कार। (8)
रंगभर चूड़ी पहनूँ कैसे,
आवत नाहिं है मनिहार। (9)
कैसे करूँ लूँ मैं श्रंगार।
सखी रे कैसे गाए गीत मल्हार।। (10)
बंधु बांधव बस गए,
सबहिं परदेस मा रे। (11)
पीहर से लिबावे को,
बचत कोई शेष ना रे।।(12)
कोन बाँधे रे हिंडोला,
कहाँ ढूँढे अमुवा डार। (13)
किस कलाई बाँधु राखी,
किसे सुनाऊँ म्हारो छार।।(14)
रह रह चित्त करे चित्कार,
सखी रे कैसे गाए गीत मल्हार। (15)
रेखा कापसे
होशंगाबाद मप्र