गीत ….भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
गीत …….भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
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प्रगति की और हम कैसे बढ़ रहे हैं
नफरतों की खूब सीढ़ियां चढ़ रहें हैं
शिक्षा प्रगति ना कर पायी अपनी
जितना अशिक्षा दायरा बढ़ा रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
सभ्यता के पांव शायद थक गए हैं
असभ्यता रात और दिन बढ़ रही है
रिश्ते सब लगने लगे हैं थके थके से
मोबाइलों की संख्या जब से बढ़ रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
घर से बेटी निकली है अच्छा करने को
दरिंदगी उससे भी आगे बढ़ रही है
हां गया है बेटा पढ़ने परदेश मेरा
वृद्ध आश्रमों की भी संख्या बढ़ रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
सीमा पर देखो जवानों की हिम्मत
नेताओं की कालाबाजारी बढ़ रही है
बांट रहा था कल जो जाड़े में कंबल
उसके हाथों लाज किसी की उतर रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
सब कहते भगवान बाद बस है डॉक्टर
किडनी आंखें और धड़कनें निकल रही है
बेटी बचाओ का नारा क्या खूब है गुंजा
मां के हाथों खूब बेटियां मर रहीं है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
घोटाले ही घोटाले सुनने में आते
भूख से सांसे किसी की टूट रही है
आंखों में उम्मीदें लेकर जो भी जीता
उसके सपनों की नगरिया लूट रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
प्रगति के कोई मायने हमको बतलाए
क्या की है हमने प्रगति कोई तो दिखलाएं
हां बढ़ी है खूब बुराई की पैंगे “सागर”
घर-घर डर की दहशत सबके घूम रही है
भारत मां कितनी प्रगति कर रही है
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गीत के मूल रचनाकार
डॉ. नरेश कुमार “सागर”