गीत …… बूंदो की सौगात दो
****** बूंदो की सौगात दो ********
प्यास से व्याकुल धरा तडपती, पानी की बरसात दो
रिमझिम -रिमझिम घूंघरू वाली, बूंदो की बरसात दो
प्यास से व्याकुल *************
बंद कली खुलनें को व्याकुल ,कपोल तपिस ना सहपाति
जब से पतझड जवान हुआ है, कोयलया भी ना गाती
छोटे-छोटे पौधे रोते , सूरज के अंगार से
कब तक और रहेगें वंचित , बगीया के श्रृंगार से
मोटी – मोटी बूंदो वाली , कोई पूरी रात दो
प्यास से व्याकुल ***************
गौरया की उछल कूद भी, धीमी धीमी लगती है
मेढक की प्यास रोज ही, टर्र टर्र चिल्लाती है
अब हवा का हर एक झोंका , झूलसा के जाता मुझको
ए – मेघों के राजा , अब लौट के आना है तुझको
प्यासी झूलसी इस धरा को , मेघों की मुलाकात दो
प्यास से व्याकुल **************
फसल सूखती हलधर रोता, कैसे अपनी बदहाली पर
नजर टिकी है धान पै उसकी, झूलसी-झूलसी वाली पर
त्राही -त्राही मची हुई है , ताले है खुशहाली पर
एक बार तो रोना बादल , हम सब की बदहाली पर
ए- दुनिया के पालनहारी, ना रोज – रोज की मौत दे
प्यास से व्याकुल *************!!
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बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
डाँ. नरेश कुमार “सागर”