#गीत //प्रेम का
‘गीत-प्रेम का”
मन की वीणा पर अब कोई,
सुर ऐसा आज सजाया जाए।
सुनके जिसको जग प्रीत बढ़े,
गीत प्रेम का वो गाया जाए।।
फूलों-सा अधरों का खिलना,
भावों का करके स्पर्श निकलना,
पुलकित करता चित जन मन का,
लहरों का ज्यों साहिल से मिलना,
देकर प्रेम प्रसाद सभी को,
निश्छलता से चित हर्षाया जाए।
सुनके जिसको जग प्रीत बढ़े,
गीत प्रेम का वो गाया जाए।।
बंजर मन की धरती क्यों है?
हाय!भावना ये मरती क्यों है?
अपना जीते उसका हारे,
मानव मति ऐसा करती क्यों है?
इंद्रधनुष-सा जीवन हो ये,
जग-नभ पर रोज सजाया जाए।
सुनके जिसको जग प्रीत बढ़े,
गीत प्रेम का वो गाया जाए।।
प्रवंचना करके ख़ुश होना,
करता ख़ुद को ही ख़ुद से बौना,
शुक्ल पक्ष आता कृष्ण पक्ष,
जैसे का तैसा कल है होना,
सच के साथी बनके यारो,
झूठों का हाल सुधारा जाए।
सुनके जिसको जग प्रीत बढ़े,
गीत प्रेम का वो गाया जाए।।
मन की वीणा पर अब कोई,
सुर ऐसा आज सजाया जाए।
सुनके जिसको जग प्रीत बढ़े,
गीत प्रेम का वो गाया जाए।
#आर.एस.प्रीतम
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