गीत प्यारे कंठ से गाता नही
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*** गीत प्यारे कंठ से गाता नही (ग़ज़ल) ****
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कोई कभी अपनी बताई बात बतलाता नही।
जो भी हुई गलती जरा सी साथ समझता नही।
रहती चहलकदमी यहाँ दिनभर न सूनापन रही,
वो भूलवश ही चल अकेला भी गली आता नही।
था तो सुरीला ही बहुत दिलदार गाता गीत को,
पहली तरह वो गीत प्यारे कंठ से गाता नही।
मरता रहा हरदम वफाई के बिना जी ना सका।
वो महफिले घर पर कभी मज़बून बुलवाता नहीं।
अपना बनाकर यार मनसीरत निभाता फ़र्ज़ को,
पर आग औरों की तरह हर बार सुलगाता नही।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)