गीत- पिता संतान को ख़ुशियाँ…
पिता संतान को ख़ुशियाँ ज़माने की लुटाता है।
किसी भी फ़र्ज़ से नज़रें नहीं मन को चुराता है।।
हज़ारों जीत के मंज़र पिता का स्नेह दिखलाए।
पिता आशीष से संतान का जीवन सँवर जाए।
छिपा अरमान ख़ुद के और बच्चों के सजाता है।
किसी भी फ़र्ज़ से नज़रें नहीं मन को चुराता है।।
बनें अफ़सर बनें डॉक्टर हज़ारों ख़्याल दिल में रख।
करे मेहनत पिता दिन-रात सपने ऑल दिल में रख।
सही हर काम बच्चों का सभी को हँस सुनाता है।
किसी भी फ़र्ज़ से नज़रें नहीं मन को चुराता है।।
ज़ुबाँ से सख़्त होता है हृदय से पुष्प-सम कोमल।
पिता क़िरदार ‘प्रीतम’ नारियल जैसा लगे निश्छल।
सभी पत्थर हटा पथ के पिता गंगा बहाता है।
किसी भी फ़र्ज़ से नज़रें नहीं मन को चुराता है।।
आर. एस. ‘प्रीतम’