नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी
शिला की तरह टूटते जा रहे हैं
कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं
न दादा के रिश्ते न दादी के रिश्ते
सभी ढो रहे सिर्फ शादी के रिश्ते
जड़ों में ही विष कूटते जा रहे हैं
कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं
नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी
न कोई है पन्ना न कोई कहानी
विरासत मगर लूटते जा रहे हैं
कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं
क्यों पुरखे हमें अब नहीं याद आते
ये रिश्तों के बिखराव मन को दुखाते
घड़े भाव के फूटते जा रहे हैं
कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं
– आकाश महेशपुरी