गीत-देखि सूर्य का आभामंडल
०२-११-२०२०
आधार छंद : लावणी
मात्रा-१६+१४
विधा:गीत
देखि सूर्य का आभामंडल, पुलकित उपवन-उपवन है।
हरषित हैं खगवृंद सभी अब,और उल्लसित जन -जन है।।
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भंवरे मंडराते कलियों पर,
और तितलियां फूलों पर।
लटक रही है बेला रानी,
झूल रही ज्यों झूलों पर।।
सभी जीव-जन आनंदित हैं, पुलकित अब अन्तर्मन है।
हर्षित हैं खगवृंद सभी अब,और उल्लसित जन-जन है।।
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पेड़ों पर चिड़ियों की चीं-चीं,
मन को बहुत लुभाती है।
मन में आशाओं के दीपक ,
नित नव भोर जगाती है।
हर्ष हुआ अतुलित यह लखकर,प्रमुदित हुआ ‘अटल’मन है।
हर्षित हैं खगवृंद सभी अब, और उल्लसित जन-जन है।।
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अटल मुरादाबादी