गीत- तेरी मुस्क़ान मरहम से…
तेरी मुस्क़ान मरहम से नहीं कम यार लगती है।
जिसे छूकर नयन की बूँद शबनम सार लगती।।
हँसी गुलशन ज़ुबाँ रेशम समझ है नूर का प्याला।
मधुर बातें तेरी हमदम अँगूरों की बनी हाला।
लबों की बू गुलाबी रुत गुलों का हार लगती है।
जिसे छूकर नयन की बूँद शबनम सार लगती।।
नदी-सी चाल है तेरी हृदय सागर वफ़ाओं का।
मैं दीवाना हुआ ज़ुल्फ़ों तेरी भोली अदाओं का।
क़सम तू ख़ूबसूरत-सा धुला संसार लगती है।
जिसे छूकर नयन की बूँद शबनम सार लगती।।
तेरी साँसें सुधा मंदिर कपोलों में उजाला है।
मेरी ख़ातिर मिलन ज़न्नत लिए उल्फ़त उजाला है।
मुझे जानाँ मुहब्बत का बड़ा विस्तार लगती है।
जिसे छूकर नयन की बूँद शबनम सार लगती।।
आर. एस. ‘प्रीतम’