गीत:- गोविंद भजो…..
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।
गोविंद जपो, गोविंद रटो,
गोविंद से प्रेम करो पगले।।
जब मौत हमारी आयेगी,
रह जायेंगे सब नियम धरे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१।।
बस एक प्रभु का भान रहे,
दूजा न मुझे कोई ज्ञान रहे।
न मान रहे, न शान रहे,
मेरे भगवन तेरा, ध्यान रहे।।
न लोभ रहे, न चाह रहे,
भाव सदा निस्काम रहे।
हे मंदमति क्यों लोभ करे,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।२।।
मत भोग करो, मत लोभ करो,
ये काम क्रोध, मद मोह तजो।
सद्-मारग पर, ही चला करो,
मेहनत फल का, आनंद चखो।।
अबला तन पर, मत मोहित हो,
जिस तन में मांस विकार बसे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।३।।
कमल पत्र पर, बूंदें जल की,
क्षणभंगुर जीवन उपमा दें।
संसार समझ, मत डूब सखे,
दु:ख रोग सकल, जग में होवें।।
धन कमाएगा, परिजन पूजें,
आशक्त पे न, कोई रीझे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।४।।
जब तक तन में, ये प्राण बसें,
सब कुशल तुम्हारी पूछ रहे।
जो प्राण पखेरू निकल गये,
मृत काया से, जग डरा करे।।
बालापन खेलों में गुजरे,
तरुणाई गुजरे प्रेम पथे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।५।।
वृद्धावस्था चिंताओं में,
प्रभु से कब कोई प्रेम करे।
न प्राणप्रिया, न पुत्र तेरा,
सब झूठा है संसार सखे।।
तुम कौन कहां से आये हो,
इस बात पे करो विचार सखे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।६।।
सत्संग से ही, वैराग्य मिले,
वैराग से तत्व का ज्ञान मिले।
ज्यों उमर ढले, सब काम तजे,
जलहीन को न, तालाब कहें।।
धनहीन से न, परिवार चले,
हो तत्व ज्ञान, जग शून्य लगे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।७।।
धन-बल-रूप पे, मत गर्व करो,
पल में परलय, कब काल करे।
माया से खुद को घिरा जान,
सब जीव जगत में भटक रहे।।
अब त्याग करो, इन व्यसनों का,
हो ब्रह्म में लीन, निवास करे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।८।।
धन और पत्नी की क्यों चिंता,
क्या कोई धनी नहीं इनका।
दिन-रात, सुबह से शाम ढले,
सर्दी गर्मी बरसात सहे।।
इच्छाओं का कभी अंत नहीं,
कालगति सब नष्ट करे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।९।।
मुण्डन कर लें, या जटा धरे,
धर छद्म भेष, भगवा तन पर।
बस पेट भरण, सब भेष धरे,
मत मोह मनुज इन भेषों पर।।
अपने ही ध्येय का पता नहीं,
बाबा बनकर, क्यों भटक रहे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१०।।
दुर्बल काया अरु केश पके,
लकड़ी के सहारे टेक चले।
नहीं दंत रहे मुख में जिनके,
वो वृद्ध भी आशा-पाश फंसे।।
सत्संग की जो पतवार गहे,
संसार से वो भव पार करे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।११।।
करपात्र में ले कर के भिक्षा,
इच्छा बंधन न छोड़ सके।
तीरथ जल में स्नान करे,
गंगासागर व्रत दान करे।।
ज्ञान बिना सब झूठा है,
सौ जन्म लगें न मुक्ति मिले।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१२।।
सुर मंदिर में या पेड़ तले,
शैय्या भू-तल एकांत बसे।
तन के सुख भोग का त्याग करे,
बैराग का ही रसपान करे।।
तपसी को बस आनंद मिले,
आनंद मिले आनंद मिले।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१३।।
कोई योगरते कोई भोगरते,
संग रहे या निसंग रहे।
भगवत गीता का पाठ करे,
भक्ति गंगा जलपान करे।।
मन में कृष्णा का जाप करे,
यमराज न उसकी बात करे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१४।।
बारंबार जन्म और मृत्यु,
बारंबार मां गर्भ श्यन।
भव सागर से पार निकलना,
बहुत कठिन है मेरे भगवन।।
जो योग में चित्त रमा आपना,
बस योगी परम अनंद रहे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१५।।
कौन हो तुम और कौन हूं मैं,
मैं कहां से जग में आन फसा।
कौन है मां और, कौन पिता,
जिनका न कोई है अता-पता।।
असार जगत को स्वपन समझ,
एक झटके में सब त्याग सखे।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१६।।
तुझ में मुझ में और सभी में,
सर्व व्याप्ति विष्णु हैं।
व्यर्थ में मत क्रोध कर,
समभाव रहो विष्णु पदे।।
रिपु सखा अरु सुत बांधव से,
न द्वेष करो न प्रेम करो।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१७।।
देख सभी में अपने आपको,
ये भेद रूपी अज्ञान तजो।
काम क्रोध मद, लोभ त्याग दो,
फिर शांत चित्त, विचार करो।।
कौन हूं मैं आया कहां से,
अपने आप विकार हरो।
गोविंद भजो, गोविंद भजो,
गोविंद भजो, हे मूढ़ मते।।१८।।
जो मोह माया में फंसे हैं,
संसार में आते सदा।
आत्म ज्ञानी मुग्ध होकर
मुक्त वही हैं होते सदा।।
आत्मज्ञान बिन मोहित मानुष,
धर रूप नरक, संसार परे।
गोविंद जपो गोविंद जपो
गोविंद जपो से मूढ़ मते।।१९।।
जो भगवत नाम जपे रसना,
सुंदर रूप उर ध्यान धरो।
मनवा तुम सत्संग लगाओ,
दीन हीन की सेवा करो।।२०।।
सुख हेतु सदा रस पान करे,
मत रोग ग्रसित हो भोगों से।
होगा मरण इक दिन सभी का,
क्यों पापमय आचरण करें।।२१।।