गीत ग़ज़लें सदा गुनगुनाते रहो।
गज़ल
212…..212…..212….212
गीत ग़ज़लें सदा गुनगुनाते रहो।
दर्दों गम में सदा मुस्कुराते रहो।
मीर ग़ालिब ज़फर ज़ौक से भी मिलो,
शायरों से भी रिश्ते बनाते रहो।
गर अमीरों से रखते हो तुम वास्ता,
मुफलिसों को गले भी लगाते रहो।
अब गरीबों के बच्चों को ये ही बचा,
लेके डिग्री पकौड़े बनाते रहो।
देश प्रेमी हों बच्चे सुनो इसलिए,
वीर पुरुषों के किस्से सुनाते रहो।
जिसने धोका दिया वोट लेकर हमें,
उसकी औकात उसको बताते रहो।
आप प्रेमी बनो या बनाओ कभी,
प्रेम से साथ उसका निभाते रहो।
…………✍️ प्रेमी