गीत- कभी हँसकर कभी झुककर…
कभी हँसकर कभी झुककर निभाओ साथ साथी का।
लगे सुंदर बड़ा अद्भुत सजाओ साथ साथी का।।
मिले साथी यहाँ क़िस्मत से बिन इसके नहीं दुश्मन।
मुहब्बत हो मुहब्बत से रहे हरपल यहाँ सावन।
रहे जो मेघ-बिजली-सा बनाओ साथ साथी का।
लगे सुंदर बड़ा अद्भुत सजाओ साथ साथी का।।
सुदामा-कृष्ण जैसा कर्ण-दुर्योधन सरीखा हो।
हमेशा साथ चंदा-चाँदनी का ले सलीका हो।
लिए चाहत लिए उल्फ़त रचाओ साथ साथी का।
लगे सुंदर बड़ा अद्भुत सजाओ साथ साथी का।।
करो तुम दोस्ती ऐसी बने इतिहास जिसका नित।
किसी मधुमास जैसा बन रहे बनके सुहाना रुत।
वफ़ा ग़ुल-बू रहे बनके खिलाओ साथ साथी का।
लगे सुंदर बड़ा अद्भुत सजाओ साथ साथी का।।
आर. एस. ‘प्रीतम’