गीत- उसे सच में नहीं पहचान चाहत और नफ़रत की…
उसे सच में नहीं पहचान चाहत और नफ़रत की।
नहीं मुस्क़ान समझे जो न आँसू जानता है जो।।
सितारे-चाँद देखे पर रहे गुमसुम अँधेरा बन।
उसे शमशान लगता है हमेशा ही खिला गुलशन।
हृदय कमज़ोर उसका है बहाने तानता है जो।
नहीं मुस्क़ान समझे जो न आँसू जानता है जो।।
नहीं इंसानियत समझे चले छल के इशारों में।
हवा गुमसुम रहे फूले हुये नाजुक गुब्बारों में।
वही ऊँचा रहेगा दिल कि ऊँचा ठानता है जो।
नहीं मुस्क़ान समझे जो न आँसू जानता है जो।।
शराफ़त की उड़ाएगा हँसी जो भी गिरेगा वो।
हुनर का मान करता जो सदा आगे बढ़ेगा वो।
विजय उसकी हमेशा हो हिदायत मानता है जो।
नहीं मुस्क़ान समझे जो न आँसू जानता है जो।।
आर.एस. ‘प्रीतम’