गीत ……आ गया फागुनया बैरी
आ गया फागुनया बैरी ……..
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आ गया फागुनया बैरी
अंग अंग तडपानें को
ना कोई रंग डारने वाला
ना कोई समझ जाने को
………आ गया फागुनया बैरी …….
पहला फागुन ऐसा आयो
मन का रोम रोम भीगो
मै भी मस्ती में ना जाने
कितनी प्रेम भंगीया पीगो
अब फागुनया दर्द ही लायो
आयो मुझे रूलानें को
………आ गया फागुनया बैरी …….
ना ‘मीरा’ का बना मै ‘मोहन’
ना ‘राधा’ का सावरिया
मोसे बिछुडी मोरी ‘सीता’
कर गई मन को बाबरया
प्रेम गली के सब हुड दंगी
आवे मोहे जलानें को
………….आ गया फागुनया बैरी ………
मौसम भी तो खेले होरी
चाँद चकौर करे है ठिठोली
मोर पुकारें पीहू पीहू
रितु बदली आजा हम जोली
मै उसकी यादों से खेलूं
अपना मन समझाने को
……….आ गया फागुनया बैरी ………
जब कोई मारे पिचकारी
लगे जिगर पर चली है आरी
सारी उमरया यूं ही कटेगी
ढूंढे कहां तोहे मारी मारी
एक बार सपनें में आजा
मोहे रंग लगा ने को
…….आ गया फागुनया बैरी .……!!
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मूल गीतकार
डाँ. नरेश कुमार “सागर”