गीत- आये हो फिर गीत चुराने
गीत- आये हो फिर गीत चुराने
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जीवन मेँ तुम आग लगाने
आये हो फिर गीत चुराने
जी का ये जंजाल रखा है
रोग ग़मोँ के पाल रखा है
जब जब ये आँखे हैँ रोतीँ
जज़बातोँ के छनते मोती
उस मोती को मीत बनाया
एक सुरीला गीत बनाया
महफिल मेँ तुम लगे सुनाने-
आये हो फिर गीत चुराने
बात कहेँगे विल्कुल सच्चे
कविता के हम जनते बच्चे
प्यार बहुत इनपर है आता
नर होकर भी हम हैँ माता
तुम हमको रंजूर करोगे
माँ बेटे को दूर करोगे
इतनी गहरी चोट लगाने-
आये हो फिर गीत चुराने
सुख देँगी क्या चीजेँ दूजी
हम कवियोँ की कविता पूँजी
वही चुरा के ले जाओगे
जख़्म नये कुछ दे जाओगे
छीनोगे पहचान हमारी
संकट मेँ है जान हमारी
मर जायेँगे सोलह आने-
आये हो फिर गीत चुराने
– आकाश महेशपुरी