गीत- अरे किसानो! डर मत जाना, इन शातिर वाचालों से।
गीत
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
हक़ की खातिर तुमभिड़ जाना,
झूठों और दलालों से।
नेता जी अब चाटुकार बन,
रोज लुभाते धनिकों को,
सेवा जनता की कब करते,
डांट लगाते श्रमिकों को,
समय आ गया हक़ लेने का,
लूट रहे ये सालों से।
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
खून पसीने से जो सींचें,
खेत और खलिहानों को,
सुख सुविधाएं मिली नहीं क्यों?
श्रमिकों और किसानों को,
जनसेवक मिल करें दलाली,
बन करके भूपालों से।
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
उल्लू अरु चमगादड़ दोनों,
कहाँ उजालों को चाहें,
देख दिवाकर की किरणों को,
रोकर के भरते आंहे,
अंधकार चाहें ये हर घर,
रखते बैर उजालों से।
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
बाधाओं को चीर बढ़ो तुम,
हर गरीब की पीर हरो,
भारत के सच्चे सपूत बन,
कालनेमि का दमन करो,
कदम बढ़ाना नित साहस से,
रुकना मत पग छालों से।
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
गर्दिश की बेड़ी में जकड़े,
मध्यम और गरीब रहें,
आखिर कब तक पीड़ाओं को,
वो निर्बल हर रोज सहें,
उठो साथियो! बढ़ो साथियो!
जलती हुई मशालों से।
अरे किसानो! डर मत जाना,
इन शातिर वाचालों से।
गीतकार
नवल किशोर शर्मा ‘नवल’
बिलारी मुरादाबाद
9758280028
nks878459@gmail.com