गीत- अमृत महोत्सव आजादी का…
अमृत महोत्सव…
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
भारत के गौरव की गाथा,
जन-जन तक पहुँचाएँ।
आजादी के साल पिछत्तर
आओ जरा टटोलें।
क्या खोया क्या पाया हमने
बँधी गिरह सब खोलें।
आजादी के परवानों के
करतब सुनें, सुनाएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
यूँ ही नहीं मिली आजादी
कीमत बड़ी चुकाई।
इस आजादी को पाने में
लाखों जान गँवाईं।
याद करें उन बलिदानों को,
झुककर शीश नवाएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
बड़ी सुघड़ हैं परंपराएँ,
अद्भुत वेद-ऋचाएँ।
अति समृद्ध अतीत हमारा,
चलो इसे दोहराएँ।
भूली-बिसरी बातें फिर सब
यादों में तिर आएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
फूट डाल कर हममें-तुममें,
अरि ने दाँव चलाया।
दिए आघात घात लगाकर,
अपना पाँव जमाया।
पराधीन हों अब भारत-जन
वे दिन कभी न आएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
स्वर्ण-खचित पिंजर में रहना,
किसको कहो लुभाए ?
स्वर्ण-थाल में स्वर्णिम रोटी,
किसकी भूख मिटाए ?
आजादी अधिकार हमारा
क्यों हम इसे गँवाएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
बुद्धि-ज्ञान जब पास हमारे,
क्यों हम बगलें झाँकें।
करें उपयोग बल का अपने,
क्यों मुँह पर का ताकें।
बनें आत्मनिर्भर, दुनिया में,
निज परचम लहराएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
कुदरत को भी प्रिय आजादी,
खलल कभी क्या भाए ?
छेड़-छाड़ जब करता मानव,
तांडव रूप दिखाए।
मुक्त करें पिंजर से पंछी,
उड़ कर नभ तक जाएँ।
अमृत महोत्सव आजादी का,
मिलकर चलो मनाएँ।
– © डॉ.सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद
साझा संग्रह “काव्य क्षितिज” में प्रकाशित