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2 Jun 2023 · 1 min read

गीतिका

गीतिका….10
मापनी-1222 1222 1222 1222
समान्त-आते , पदान्त-हैं ।

दिखाते खेल प्रभु हर पल नहीं हम देख पाते हैं ।
नदी के नीर से बहते हुए जीवन बिताते हैं ।।

कहाँ से सूर्य आता है कहाँ से चन्द्रमा उगता ?
न सोचा ये सितारे इस तरह क्यों टिमटिमाते हैं ?

कभी है सर्द मौसम तो कभी वर्षा कभी गर्मी ।
कहाँ से नीर लाके घन गरजते रिमझिमाते हैं ?

उगे थे डाल पर कोमल कभी पत्ते गुलाबी से ।
वही पीले पड़े झर कर गिरे क्यों टूट जाते हैं ?

किसी को नर बनाया क्यों यहाँ मादा बनी
कोई ?
खिलौने हैं उन्हीं के हम सभी ज्ञानी बताते हैं ।।

जवानी खेलते बीती बुढ़ापा आ गया कैसे ?
सुहाने हैं बड़े फन्दे कसे क्यों मन लुभाते हैं ?

उन्हीं की है सभी माया वही नित खेलते इससे ।
जलायें ‘ज्योति’ को क्यों फिर वही दीपक
बुझाते हैं ।।

महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
***

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 356 Views
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