गीतिका
गीतिका….10
मापनी-1222 1222 1222 1222
समान्त-आते , पदान्त-हैं ।
—
दिखाते खेल प्रभु हर पल नहीं हम देख पाते हैं ।
नदी के नीर से बहते हुए जीवन बिताते हैं ।।
–
कहाँ से सूर्य आता है कहाँ से चन्द्रमा उगता ?
न सोचा ये सितारे इस तरह क्यों टिमटिमाते हैं ?
–
कभी है सर्द मौसम तो कभी वर्षा कभी गर्मी ।
कहाँ से नीर लाके घन गरजते रिमझिमाते हैं ?
–
उगे थे डाल पर कोमल कभी पत्ते गुलाबी से ।
वही पीले पड़े झर कर गिरे क्यों टूट जाते हैं ?
–
किसी को नर बनाया क्यों यहाँ मादा बनी
कोई ?
खिलौने हैं उन्हीं के हम सभी ज्ञानी बताते हैं ।।
–
जवानी खेलते बीती बुढ़ापा आ गया कैसे ?
सुहाने हैं बड़े फन्दे कसे क्यों मन लुभाते हैं ?
–
उन्हीं की है सभी माया वही नित खेलते इससे ।
जलायें ‘ज्योति’ को क्यों फिर वही दीपक
बुझाते हैं ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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