गीतिका
* आभार लिखें *
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छलकें गीत गगरिया जैसे , आओ मन का प्यार लिखें ।
अभिसारों की सारी गाथा , पन्नों पर मनुहार लिखें ।।
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जैसे झर-झर झरना झरता , करता आलिंगन बहता ।
उर में निर्झर झरे निरंतर , आओ उसकी धार लिखें ।।
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खुली हुई खिड़की से झाँका , था जब चन्दा रातों को ।
किरणों ने जो की अठखेली ,वो सब ब्यौरेवार लिखें ।।
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फूलों ने मकरंद लुटाया , कलियों पर अलि मड़राया ।
मस्त हुआ था रस पी करके ,कैसा था अधिकार लिखें ।।
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मौसम ने जब ली अँगड़ाई , अंकुर बन कर बीज उगा ।
लेखा-जोखा लेन-देन का , वह सारा व्यापार लिखें ।।
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दीप जला आमंत्रण देता , मस्त पतंगे मड़राते ।
हँसते-हँसते क्यों जल जाते , मन का भाटा-ज्वार लिखें ।।
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पग-पग पर बिखरी है गाथा , एक-एक पल क्षण-क्षण की ।
कभी नहीं जो कह पाये थे , आज वही आभार लिखें ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’ ,
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