गीतिका
गीतिका …3
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(आधार छंद रजनी- मापनीयुक्त मात्रिक
(२१२२ २१२२ २१२२ २)
समांत- अता, पदांत- है ।
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रिमझिमा कर घन झरे मन मुग्ध करता हैै ।
ये लगे बैरी गरज कर जब बरसता है ।।
०
टूट जो बिखरे, नहीं कहते उसे माला ।
मोतियों को जोड़ चुन-चुन हार बनता है ।।
०
ले रहे निर्णय मगर इतना नहीं सोचा ।
क्यों किसी के ये हृदय में आग भरता है ।।
०
एक चिंगारी बहुत है राख करने को ।
जल स्वयं भी जायगा तू क्यों न डरता है ।।
०
कुछ दिनों के बाद फिर से द्वार आयेगा ।
उस दिवस का तू न दिल में ध्यान धरता है ।।
०
हाथ में डंडा थमाया कर भला सबका ।
क्यों न उसको थाम समता भाव रखता है ।।
०
फैल करके आग बन जाये न दावानल ।
जानकी को मृग न छल हर बार सकता है ।।
०
-महेश जैन ‘ज्योति’
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